Tuesday, March 18, 2008

भारतीय जनमानस की संकीर्णता

अभी हाल में एक घटना बहुत सुर्खियों में है...गोवा में ब्रिटेन से आई एक १५ साल की लड़की स्कार्लेत्त के साथ बलात्कार होता है और उसकी हत्या कर दी जाती है...सबसे पहले हमारी भारतीय पुलिस इसे हत्या मानने से ही इंकार कर देती है...फ़िर गोवा के मुख्यमंत्री उस लड़की की माँ पे सवाल उठाते हैं...जिसने अपनी बेटी को एक अनजाने जगह पे अकेले छोड़ दिया...
इसी विषय पे बीबीसी हिन्दी ने पाठकगन से विचार मांगे जो काफी दिलचस्प हैं...उनमें से कुछ टिप्पणियां मैं यहाँ डाल रहा हूँ...
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स्कारलेट की हत्या के दोषी को सज़ा होनी ही चाहिए। लेकिन सवाल ये है कि क्या ये नारी, नशा और नंगेपन के मेल का परिणाम तो नहीं? आखिर ज़रूरत ही क्या थी रात के वक्त किसी अजनबी के साथ बाहर जाकर अय्याशी करने की? कहावत पुरानी है कि रुई और आग को साथ-साथ रखेगें तो जलेंगे ही. दूसरा पहलू ये कि अय्याशी में चूर स्कारलेट की मौत वाकई हादसा हो. या फिर पहले साथी ने उसकी मर्ज़ी से सेक्स किया हो और दूसरे ने ज़बर्दस्ती से और ये हादसा हुआ. देखिए, अपनी सुरक्षा अपने हाथ होती है और मर्यादा का ख्याल हर किसी को रखना होता है
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भारत हो या कोई भी देश, आ बैल मुझे मार की तरह तर्ज़ पर देर-सवेर उल्टी सीधी पोशाक में मौज करने वाले युवाओं की सुरक्षा भला कौन और कब तक कर सकता है। बलात्कार की शिकार नारी या उसके परिजनों से पुलिस कुछ भी पूछे, उन्हें उत्पीड़न ही लगता है. क्योंकि इसमें उन्हें शर्म महसूस होती है. देर रात घर से निकलने वाली युवतियाँ यदि अपनी इज़्ज़त के प्रति सचेत हों तो बेवक्त घर से निकलें ही क्यों. सज्जन पुरुष भी देर रात को घर से निकलना टालते हैं.
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अगर ये मान भी लें एक १५ साल की लड़की को अकेले नही होना चाहिए था या दृग्स नही लेना चाहिए था...फ़िर भी किसी भी तरह पुलिस अपनी जिम्मेदारी से नही भाग सकती...तमाम आधुनिकीकरण के बाद भइ अगर हम एक लड़की को सुरक्षा नही दे सकता टू लानत है ऐसे विकास का...कैसे लोग डर जाते हैं उन गुंडों के खिलाफ कड़ी kaarvai करने के बजाए हम अपने में ही गलतिया ढूंढ रहे हैं..शायद ये हममें छिपी गुलामी की मानसिकता को दर्शाता है। पता नही हम कब बाहर निकलेंगे इन सबसे और एक अच्छे समाज की रचना कर पाएंगे...

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