गुनाहों का देवता
मैं बहुत दिनों से सोच रहा था कि हिंदी में कभी कुछ लिखूं लेकिन यह सोच कर कि मैं टाईप कैसे कर पाउँगा कभी भी प्रयास नही किया...लेकिन गूगल ने ऐसा कुछ सोच रखा है पता ही नहीं था! इससे आसान भी कुछ हो सकता है...कह नही सकता.
हिंदी मेरी मातृभाषा है इसमें लिखने और पढने का जो रस है वो कभी कहीँ और नही आ सकता. कुछ दिनों पहले एक निकट मित्र के कहने पर मैंने एक पुस्तक पढी 'गुनाहों का देवता'।
ये तो निश्चयपूर्वक नही कह सकता कि धर्मवीर भारती हिंदी साहित्य के सबसे अच्छे लेखक हैं लेकिन सबसे अच्छों में से एक तो निश्चित ही हैं।
कहानी के बारे में क्या लिखूं । सबसे पहले कहानी कि पृष्ठभूमि उत्तर प्रदेश की है '70 के दशक कि मूलतः। कहानी लखनऊ के आस-पास ही घूमती है। कहानी ऐसी है कि एक बार शुरू करने के बाद समाप्त किया बिना आप रह नही पायेंगे।
कहानी तीन मुख्य किरदारों के इर्द-गिर्द घूमती है। ये हैं चंदन कपूर, सुधा और विनती। चंदन या चंदर सुधा के घर में रहकर उसके पिता, जो कि युनिवर्सिटी में प्रोफेसोर हैं, कि सहायता से पढ़ाई कर रहा है, सुधा के घर में ही रहता है। ज़ाहिर सी बात है कि वो सुधा के पिता के एहसानों तले दबा है। सुधा और चंदर बहुत अच्छे दोस्त है, सुधा चंदर को बहुत पसंद करती है पर किस रुप में और कितना, इतना समझने कि शक्ति उसमें आयी ही नही है। विनती सुधा के बुआ की लडकी है है जो सुधा के घर में रहने आती है।
मैं पुरी कहानी का वर्णन तो यहाँ नही कर सकता लेकिन कहानी अपने आप में बहुत सारे मार्मिक क्षणों को समाये है। इंसानी रिश्तों ताना-बाना कितना जटिल है, शायद यही समझाना लेखक का मूल उद्देश्य है। प्यार कितना सच्चा और पवित्र हो सकता है ये भी लेखक ने दिखाया है। काम-वासना या सेक्स पर भी लेखक ने prakash डालने की चेष्टा की है। कहानी के अंत में किसी निश्चित निष्कर्ष पर पहुंच पाना तो संभव ही नही है। ये तो पढने वाले कि मन में अनगिनत सवाल पैदा कर देता है जो बहुत समय तो सोचे के लिए मजबूर कर देंगे।
कहानी का अंत अत्यंत ही मार्मिक है। सच कहूं तो अंत के ३-४ पन्ने मुझसे पढे ही नही गए। सुधा, जिससे कहानी पढ़ते-पढ़ते किसी भी ह्रदय वाले मनुष्य को प्यार हो जाएगा, के दर्द कि अनुभूति ही ह्रदय को विकल कर देता है।
कहानी तत्कालीन समाज में स्थापित रूधिवाद पर भी प्रहार करती है। जातिवाद, प्रेम-विवाह है।
सबसे ज्यादा कहानी में किसी का मज़ाक तो चंदर का। वैसे मेरी समझ में उसने कभी कुछ गलता नही किया, वो तो अपने चरित्र को सोने से भी अधिक सुनहरा बनाना चाहता था, उस पराकाष्ठा पर पहुँचाना चाहता था जहाँ सिर्फ देवता ही पहुंच सके या पहुंच सकते हैं। लेकिन manusya तो मनुष्ये है ना। जब गिरा तो इतना नीचे कि रूक ही ना सका। कहानी का शीर्षक भी शायद इसी ओर है।
कहानी में सुधा के पिता का चरित्र भी बहुत कुछ बताता है। उस्नके अनुभाब उस्नको कहॉ से कहॉ ले जाते हैं। वही इन्सान जो सुधा कि शादी में घोर जातिवादी थे, कैसे विनती की शादी चंदर से कराने को इचापुर्वक तैयार हो जाते हैं। सुधा की शादी के समाया अगर उन्होने इतना अन्याय नही किया होता तो जाने कितनी ही ज़िन्दगिया बरबाद होने बच जाती ।जाने इससे सीख क्या मिलती है, कि जो सही है वही करो दुनिया अंत में मान ही जाती है या ना मने कम से कम इन ढकोसलों का कोई मतलब तो नही होता। वैसे कहानी के प्रसंग में सुधा के पिता को भी दोष देना उचित नही होगा।
पुनः बहुत सरे सवाल, अगर कहानी एकदम विपरीत दृष्टिकोण से लिखी गयी होती और प्रेम-विवाह में होने वाली समस्याओं को दिखाया होता तो कुछ और ही होता। कुछ कहा नही जा सकता।
जो भी हो ये कहानी एक बार पढने लायक तो जरूर ही है।
नोट: बहुत दिनों के बाद हिंदी में कुछ लिखने का प्रयास कर रह हूँ पाठक-गन क्षमा करेंगे। कुछ समय पहले छोटी बहन को हिंदी में एक पत्र लिखा था बहुत मुश्किल हुई थी देवनागरी लिखने में। बिल्कुल भी अभ्यास नही रहा अब।
हिंदी मेरी मातृभाषा है इसमें लिखने और पढने का जो रस है वो कभी कहीँ और नही आ सकता. कुछ दिनों पहले एक निकट मित्र के कहने पर मैंने एक पुस्तक पढी 'गुनाहों का देवता'।
ये तो निश्चयपूर्वक नही कह सकता कि धर्मवीर भारती हिंदी साहित्य के सबसे अच्छे लेखक हैं लेकिन सबसे अच्छों में से एक तो निश्चित ही हैं।
कहानी के बारे में क्या लिखूं । सबसे पहले कहानी कि पृष्ठभूमि उत्तर प्रदेश की है '70 के दशक कि मूलतः। कहानी लखनऊ के आस-पास ही घूमती है। कहानी ऐसी है कि एक बार शुरू करने के बाद समाप्त किया बिना आप रह नही पायेंगे।
कहानी तीन मुख्य किरदारों के इर्द-गिर्द घूमती है। ये हैं चंदन कपूर, सुधा और विनती। चंदन या चंदर सुधा के घर में रहकर उसके पिता, जो कि युनिवर्सिटी में प्रोफेसोर हैं, कि सहायता से पढ़ाई कर रहा है, सुधा के घर में ही रहता है। ज़ाहिर सी बात है कि वो सुधा के पिता के एहसानों तले दबा है। सुधा और चंदर बहुत अच्छे दोस्त है, सुधा चंदर को बहुत पसंद करती है पर किस रुप में और कितना, इतना समझने कि शक्ति उसमें आयी ही नही है। विनती सुधा के बुआ की लडकी है है जो सुधा के घर में रहने आती है।
मैं पुरी कहानी का वर्णन तो यहाँ नही कर सकता लेकिन कहानी अपने आप में बहुत सारे मार्मिक क्षणों को समाये है। इंसानी रिश्तों ताना-बाना कितना जटिल है, शायद यही समझाना लेखक का मूल उद्देश्य है। प्यार कितना सच्चा और पवित्र हो सकता है ये भी लेखक ने दिखाया है। काम-वासना या सेक्स पर भी लेखक ने prakash डालने की चेष्टा की है। कहानी के अंत में किसी निश्चित निष्कर्ष पर पहुंच पाना तो संभव ही नही है। ये तो पढने वाले कि मन में अनगिनत सवाल पैदा कर देता है जो बहुत समय तो सोचे के लिए मजबूर कर देंगे।
कहानी का अंत अत्यंत ही मार्मिक है। सच कहूं तो अंत के ३-४ पन्ने मुझसे पढे ही नही गए। सुधा, जिससे कहानी पढ़ते-पढ़ते किसी भी ह्रदय वाले मनुष्य को प्यार हो जाएगा, के दर्द कि अनुभूति ही ह्रदय को विकल कर देता है।
कहानी तत्कालीन समाज में स्थापित रूधिवाद पर भी प्रहार करती है। जातिवाद, प्रेम-विवाह है।
सबसे ज्यादा कहानी में किसी का मज़ाक तो चंदर का। वैसे मेरी समझ में उसने कभी कुछ गलता नही किया, वो तो अपने चरित्र को सोने से भी अधिक सुनहरा बनाना चाहता था, उस पराकाष्ठा पर पहुँचाना चाहता था जहाँ सिर्फ देवता ही पहुंच सके या पहुंच सकते हैं। लेकिन manusya तो मनुष्ये है ना। जब गिरा तो इतना नीचे कि रूक ही ना सका। कहानी का शीर्षक भी शायद इसी ओर है।
कहानी में सुधा के पिता का चरित्र भी बहुत कुछ बताता है। उस्नके अनुभाब उस्नको कहॉ से कहॉ ले जाते हैं। वही इन्सान जो सुधा कि शादी में घोर जातिवादी थे, कैसे विनती की शादी चंदर से कराने को इचापुर्वक तैयार हो जाते हैं। सुधा की शादी के समाया अगर उन्होने इतना अन्याय नही किया होता तो जाने कितनी ही ज़िन्दगिया बरबाद होने बच जाती ।जाने इससे सीख क्या मिलती है, कि जो सही है वही करो दुनिया अंत में मान ही जाती है या ना मने कम से कम इन ढकोसलों का कोई मतलब तो नही होता। वैसे कहानी के प्रसंग में सुधा के पिता को भी दोष देना उचित नही होगा।
पुनः बहुत सरे सवाल, अगर कहानी एकदम विपरीत दृष्टिकोण से लिखी गयी होती और प्रेम-विवाह में होने वाली समस्याओं को दिखाया होता तो कुछ और ही होता। कुछ कहा नही जा सकता।
जो भी हो ये कहानी एक बार पढने लायक तो जरूर ही है।
नोट: बहुत दिनों के बाद हिंदी में कुछ लिखने का प्रयास कर रह हूँ पाठक-गन क्षमा करेंगे। कुछ समय पहले छोटी बहन को हिंदी में एक पत्र लिखा था बहुत मुश्किल हुई थी देवनागरी लिखने में। बिल्कुल भी अभ्यास नही रहा अब।
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